बिरसा मुंडा -माधुरी
पठार plateau
1. मुंडा कौन हैं? वे कहाँ रहते थे?
उत्तर - मुंडा आदिवासी लोग हैं। वे झारखंड के छोटा नागपुर पठारी क्षेत्र में रहते थे।
2. किस आंदोलन को 'सरदारी लडाई' के नाम से जाना जाता है?उत्तर -ज़मींदारों द्वारा ज़मीन हथिया लिए जाने के कारण मुंडाओं ने ज़मींदारों के खिलाफ़ जो आंदोलन चलाया वह 'सरदारी लड़ाई' के नाम से जाना जाता है।
3. मुंडा आदिवासी जंगलों की किस प्रकार रक्षा करते थे? उत्तर -.मुंडा आदि वासी जंगलों में सूखी टहनियों,पत्तियों तथा गिरी हुई डालियों को एकत्र करने के अलावा कोई भी पेड़ नहीं काटता था।इस प्रकार वे जंगलों को सुरक्षित रखते थे।
4. अंग्रेजी राज समाप्त करने के लिए बिरसा मुंडा ने क्या-क्या किया? उत्तर -अंग्रेज़ी राज समाप्त करने के लिए बिरसा मुंडा ने सभी मुंडाओं को सलाह दी कि वे किसी को भी लगान नहीं देंगे और अंग्रेज़ी हुक्म को नहीं मानेंगे। उन्होंने लोगों को बताया कि महारानी विक्टोरिया का राज खत्म हो गया है और मुंडा राज शुरू हो गया है।
1.नुक्ता वाले शब्द -
आज़ादी गिरफ़तारी अंग्रेज़ ज़मीन तीरंदाज़ सज़ा खलाफ़ फ़ैसला
2.संयुक्त क्रिया-
क)अंग्रेज़ सरकार परेशान हो गई।
ख)उनके कुछ साथियों पर मुकदमा चलाया गया।
3.शब्दों मे 'र' का प्रयोग कीजिए-
दुर्भाग्यपूर्ण अंग्रेज़ों क्रांतिकारी विद्रोह दर्ज
कुछ करने के लिए
1. राज्य का नाम आदिवासी जनजाति
झारखंड मुंडा
बिहार सांथाली
ओडिशा कंध
आंध्रप्रदेश गोंड
अरुणाचल प्रदेश गारो
मुंडा
सांथाली
कंध आदिवासी
गोंड आदिवासी
गारो आदिवासी
काला पानी की सज़ा
सेल्युलर जेल का निर्माण
सेल्युलर जेल का निर्माण पोर्ट ब्लेयर में जो की अंडमान निकोबार द्वीपसमूह की राजधानी हैं यहीं पर सेल्युलर बनाई गई थी. इस जेल को बनाने में किसी हिन्दुस्तानी का नहीं बल्कि अंग्रेजो का हाथ था. साल 1857 की पहली क्रांति के दौरान अंग्रेजो के दिमाग में सेल्युलर जेल बनाने की योजना आई थी. दरअसल इस जेल का बनाने का मकसद स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों को कैद कर यहाँ बंदी बानाने का मकसद था. पूरी योजना के साथ इस जेल का निर्माण किया गया था. सन्न 1896 में इस जेल को बनाने का काम शुरू किया गया था. इस जेल को बनाने में लगभग 10 लगे थे. इस के बाद सन्न 1906 में यह जेल पूरी तरह से बन कर तैयार हो गई थी.
इस 3 मंजिल और 7 शाखाएँ वाली जेल में 696 सेल मौजूद थे. इस जेल के हर सेल का आकार 4.5 मीटर × 2.7 मीटर था. इस जेल के हर सेल के 3 मीटर ऊँची एक खिड़की भी बनाई गई थी. बैसे तो इस खिड़की का आकार इतना है की कोई भी आसानी से इस खिड़की से भाग सकता है. लेकिन जेल के चारों तरफ पानी होने के कारण यह असंभव था. इस जेल के 7 शाखाओं के बीच में एक टावर बनाया गया था जिस पर से इस जेल के कैदियों पर नज़र रखी जा सके इसी के साथ इस टावर पर एक घंटा भी लगाया गया था इस घंटे को कोई ख़तरा होने पर बजाया जाता था. इस जेल को बनाने में लाल ईंटो का उपयोग किया गया था इन ईंटो को बर्मा से लाया गया था. सेल्युलर जेल को बनाने में 5 से 17 लाख रूपये का खर्चा आया था.
सेल्युलर जेल को काला पानी की साजा की जेल क्यों कहा जाता है दरअसल सेल्युलर जेल में जिस भी कैदी को सजा भुगतने के लिए भेजा जाता था. उसे बोल-चाल की भाषा में कहते थे की इसे काला पानी की सजा दि गई है. अब आप के मन में प्रश्न अ रहा होगा की इसे काला पानी की सजा क्यों कहते हैं. दरअसल यह जेल भारत की भूमि से हजारों किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. इसी के साथ इस जेल के चारों तरफ पानी ही पानी है. इस जेल में हर कैदी के लिए एक सेल था इस लिए इस जेल को सेल्युलर जेल कहते हैं इससे होता यह की कोई भी कैदी आपस में बात न कर पाए. इसी के साथ इस जेल में कैदियों को बेड़ियों से बांध कर रखा जाता था. साथ ही कैदियों से कोलुओ द्वारा तेल भी पिलवाया जाता था.
देश के इन क्रांतिकारीयों को मिली थी काले पानी की सजा
सेल्युलर जेल में सजा काटने वाले क्रांतिकारियों में से गोपाल भाई परमानन्द, वामन राव जोशी, दीवान सिंह, एस.
चंद्र चटर्जी, मौलाना फजल ए हक खैराबादी, योगेंद्र शुक्ला, मौलाना अहमदुल्लाह, मौलवी अब्दुल रहीम सादिकपूरी, सोहन सिंह, अहमदुल्लाह, विनायक दामोदर सावरकर, और दत्तबटुकेश्वर के नाम शामिल हैं.
भारत सरकार ने सन्न 1979 में सेल्युलर जेल को एक राष्टीय स्मारक घोषित कर दिया था. वर्तमान में कोई भी भारतीय इस जेल में घूमने जा सकता है और देश के क्रांतिकारियों पर हुए जुल्म को भी देख सकतें हैं.
बातचीत के लिए
3.क्रांतिकारियों के बारे में जानकारी
१८५७ के क्रांतिकारियों की सूची
मंगल पांडे 1857 की क्रांति के महानायक थे। ये वीर पुरुष आज़ादी के लिये हंसते-हंसते फ़ंासी पर लटक गये। इनके जन्म स्थान को लेकर शुरू से ही वैचारिक मतभेद हैं। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इनका जन्म जुलाई 1827 में उत्तर प्रदेश (बालिया) जिले के सरयूपारी (कान्यकुब्ज) ब्राह्मण परिवार में हुआ। कुछ इतिहासकार अकबरपुर को इनका जन्म स्थल मानते हैं। इनके पिता का नाम दिवाकर पांडे था जो कि भूमिहार ब्राह्मण थे।बड़े होकर वे कलकत्ता के बैऱकपुर की नेटिव इनफ़ेन्ट्री में सिपाही के पद पर नियुक्त हुए। वहां से 1849 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में भर्ती हुए। उस समय इनकी आयु 22 साल की थी। मंगल पांडे शुरू से ही स्वतंत्रता प्रिय व धर्मपरायण व्यक्ति थे। वे इनकी रक्षा के लिये अपनी जान भी देने के लिये तैयार रहते थे।
जब वे सेना में थे तो एक दिन दमदम के निकट कुएं से पानी भर रहे थे तब एक निम्न जाति के व्यक्ति (अछूत) ने उनसे लोटा मांगा तो उन्होंने देने से इंकार कर दिया तब उस निम्न जाति के व्यक्ति ने कहा की आप मुझे (अछूत होने के कारण) लोटा मत दो लेकिन जब फ़ौज में गाय व सूअर की चर्बी वाले कारतूसों का उपयोग करना पड़ेगा तो आप अपने धर्म को कैसे बचाओगे। ये बात सुनकर मंगल पांडे का दिमाग ठनका। उन्होंने सोचा अब या तो धर्म छोड़ना पडे़गा या विद्रोह करना पड़ेगा। फ़िर तय किया की प्राण भले ही जाये पर धर्म नहीं छोडूंगा। फ़लस्वरू प नेताओं द्वारा निश्चित तिथि से पहले ही उन्होंने विद्रोह का बिगुल बजा दिया। अंत में 31 मई को सारे देश में क्रांति की शुरू आत हो गई। इस क्रांति की शुरू आत परेड़ मैदान में हुई थी। 29 मार्च की एक शाम को बैरकपुर में मंगल पांडे ने अपनी रेजिमेंट के लेफ़्टिनेन्ट पर हमला कर दिया। सेना के जनरल ने सब सिपाहियों को मंगल पांडे़ को गिरफ़्तार करने का आदेश दिया, परन्तु किसी ने आदेश नहीं माना। इस पर मंगल पांडे़ ने अपने साथियों को विद्रोह करने के लिये कहा, लेकिन किसी ने भी उनका साथ नहीं दिया।
इस क्रांति में मंगल पांडे ने कई ब्रितानी सिपाहियों व अधिकारियों को मौत के घाट उतारा व हिम्मत नहीं हारी। जब अंत में अकेले हो गये तो उन्होंने ब्रितानियों के हाथ से मरने के बजाय खुद मरना स्वीकार किया। उन्होंने खुद को गोली मार दी और बुरी तरह से घायल हो गये। कुछ समय तक अस्पताल में उनका इलाज चला।
ब्रिटिश सरकार ने 8 अप्रैल 1857 को मंगल पांडे का कोर्ट मार्शल किया व उनको फ़ांसी पर चढ़ा दिया। रेजिमेन्ट के जिन सिपाहियों ने मंगल पांडे का विद्रोह में साथ दिया ब्रिटिश सरकार ने उनको सेना से निकाल दिया और पूरी रेजिमेन्ट को खत्म कर दिया। अन्य सिपाहियों ने इस निर्णय का विरोध किया। वे इस अपमान का बदला लेना चाहते थे। इसी विरोध ने 1857 की क्रांति को हवा दी धीरे -धीरे ये लहर हर जगह फ़ैलती गई। इलाहाबाद, आगरा आदि स्थानों पर तोड़फ़ोड़ व आगजनी की घटनाएँ हुई। नेताओं द्वारा तय की गई तिथि से पहले क्रांति की शुरू आात करने के कारण शायद यह क्रांति विफ़ल हो गई। फ़िर भी हम शहीद मंगल पांडे के बलिदान को कभी भी भुला नहीं पायेंगे ।
भगत सिंह (जन्म: २८ सितम्बर १९०७
[a] , मृत्यु: २३ मार्च १९३१)
भारत के एक प्रमुख
स्वतंत्रता सेनानी क्रांतिकारी थे।
चन्द्रशेखर आजाद व पार्टी के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर इन्होंने देश की आज़ादी के लिए अभूतपूर्व साहस के साथ शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार का मुक़ाबला किया। पहले
लाहौर में साण्डर्स की हत्या और उसके बाद
दिल्ली की केन्द्रीय संसद (सेण्ट्रल असेम्बली) में बम-विस्फोट करके
ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध खुले विद्रोह को बुलन्दी प्रदान की। इन्होंने असेम्बली में बम फेंककर भी भागने से मना कर दिया। जिसके फलस्वरूप इन्हें
२३ मार्च १९३१ को इनके दो अन्य साथियों,
राजगुरुतथा
सुखदेव के साथ फाँसी पर लटका दिया गया। सारे देश ने उनके बलिदान को बड़ी गम्भीरता से याद किया।
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