Friday 4 September 2020

बिरसा मुंडा- माधुरी

 बिरसा मुंडा MCQ TEST 

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पाठ में से 


1. मुंडा कौन हैं? वे कहाँ रहते थे?

 2. किस आंदोलन को 'सरदारी लडाई' के नाम से जाना जाता है?

 3. मुंडा आदिवासी जंगलों की किस प्रकार रक्षा करते थे? 

4. अंग्रेजी राज समाप्त करने के लिए बिरसा मुंडा ने क्या-क्या किया? 

उत्तर -
1.मुंडा आदिवासी लोग हैं। वे बिहार के दक्षिणी पहाड़ी इलाके में रहते हैं।
2.ज़मींदारों द्वारा ज़मीन हथिया लिेए जाने के कारण मुंडाओं ने ज़मींदारों के खिलाफ़ जो आंदोलन चलाया वह 'सरदारी लड़ाई' के नाम से जाना जाता है।
3.मुंडा आदिवासी जंगलों में सूखी टहनियों,पत्तियों तथा गिरी हुई डालियों को एकत्र करने के अलावा कोई भी पेड़ नहीं काटता था।इस प्रकार वे जंगलों को सुरक्षित रखते थे।
4.अंग्रेज़ी राज समाप्त करने के लिए बिरसा मुंडा ने सभी मुंडाओं के सलाह दी कि वे किसी को भी लगान नहीं देंगे और अंग्रेज़ी हुक्म को नहीं मानेंगे। उन्होंने लोगों को बताया कि महारानी विक्टोरिया का राज खत्म हो गया है और मुंडा राज  शुरू हो गया है। 
भाषा की बात 
1.नुक्ता वाले शब्द - आज़ादी  गिरफ़तारी  अंग्रेज़  ज़मीन तीरंदाज़ सज़ा खलाफ़ फ़ैसला
2.संयुक्त क्रिया- 
क)अंग्रेज़ सरकार परेशान हो गई।
ख)उनके कुछ साथियों पर मुकदमा चलाया गया।
3.शब्दों मे  'र' का प्रयोग कीजिए-
दुर्भाग्यपूर्ण  अंग्रेज़ों  क्रांतिकारी  विद्रोह दर्ज

कुछ करने के लिए 
1. राज्य का नाम            आदिवासी जनजाति
 झारखंड                        मुंडा
बिहार                             सांथाली
ओडिशा                            कंध
आंध्रप्रदेश                         गोंड
अरुणाचल प्रदेश                 गारो

2. महिला स्वतंत्रता सेनानी                                                योगदान
         (चित्र और नाम
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भारत में जब भी महिलाओं के सशक्तिकरण की बात होती है तो महान वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई की चर्चा जरूर होती है। बचपन में इनका नाम मणिकर्णिका था, बाद में लक्ष्मी बाई बनीं देवी लक्ष्मी के सम्मान में इन्होंने अपना नाम लक्ष्मी बाई रखा। 14 साल की उम्र में इनका विवाह झांसी के राजा गंगाधर राव के साथ हुआ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में प्रमुख उपलब्धियां ब्रिटिश सरकार के कानून को पालन करने से इंकार कर दिया मौत से पहले तक इन्होंने अंग्रेज के साथ वीरता से लड़ा। 22 साल की उम्र में ब्रिटिश सेना से लोहा लेते हुए शहीद हो गई।
भीकाजी कामा (फाइल फोटो)श्रीमती भीकाजी जी रूस्तम कामा (मैडम कामा) भारतीय मूल की पारसी नागरिक थीं जिन्होंने लन्दन, जर्मनी तथा अमेरिका का भ्रमण कर भारत की स्वतंत्रता के पक्ष में माहौल बनाया। वो जर्मनी के स्टटगार्ट नगर में 22 अगस्त 1907 में हुई सातवीं अंतर्राष्ट्रीय कांग्रेस में भारत का प्रथम तिरंगा राष्ट्रध्वज फहराने के लिए प्रसिध्द हैं। उस समय तिरंगा वैसा नहीं था जैसा आज है।
उनके द्वारा पेरिस से प्रकाशित 'वन्देमातरम्' पत्र प्रवासी भारतीयों में काफी लोकप्रिय हुआ। 1907 में जर्मनी के स्टटगार्ट में हुयी अन्तर्राष्ट्रीय सोशलिस्ट कांग्रेस में मैडम भीकाजी कामा ने कहा, 'भारत में ब्रिटिश शासन जारी रहना मानवता के नाम पर कलंक है। एक महान देश भारत के हितों को इससे भारी क्षति पहुंच रही है।'
उन्होंने लोगों से भारत को दासता से मुक्ति दिलाने में सहयोग की अपील की और भारतवासियों का आह्वान किया, 'आगे बढ़ो, हम हिन्दुस्तानी हैं और हिन्दुस्तान हिन्दुस्तानियों का है।' 
यही नहीं मैडम भीकाजी कामा ने इस कांफ्रेंस में 'वन्देमातरम्' अंकित भारत का प्रथम तिरंगा राष्ट्रध्वज फहरा कर अंग्रेजों को कड़ी चुनौती दी। मैडम भीकाजी कामा लन्दन में दादा भाई नौरोजी की प्राइवेट सेक्रेटरी भी रही थी।
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Image result for महिला स्वतंत्रता सेनानीसरोजिनी नायडू 'भारत कोकिला' के नाम से प्रख्यात श्रीमती नायडू ने एक उत्साही स्वतंत्रताकार्यकर्ता और एक कवि के रूप में सन 1930-34 के सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लिया था। ..

Image result for महिला स्वतंत्रता सेनानीसुचेता कृपालानी एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी के साथ ही राजनीतिज्ञ भी थी। भारतीय राज्य (उत्तर प्रदेश) की मुख्यमंत्री बनने वाली वो पहली महिला बनीं। स्वतंत्रता आंदोलन में सुचेता के योगदान को भी हमेशा याद किया जाएगा। 1908 में जन्मी सुचेता जी की शिक्षा लाहौर और दिल्ली में हुई थी। आजादी के आंदोलन में भाग लेने के लिए उन्हें जेल की सजा भी हुई थी। 
सुचेता भारत के बंटवारे की त्रासदी के समय महात्मा गांधी के बेहद करीब रही थी। वो उन महिलाओं में शामिल थी जिन्होंने गांधी जी के करीब रहकर देश की आजादी की नींव रखी थी। वो नोवाखली यात्रा में बापू के साथ थी।
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बेगम हज़रत महल जो अवध (अउध) की बेगम के नाम से भी प्रसिद्ध थी, अवध के नवाब वाजिद अली शाह की दूसरी पत्नी थीं। अंग्रेज़ों द्वारा कलकत्ते में अपने शौहर के निर्वासन के बाद उन्होंने लखनऊ पर क़ब्ज़ा कर लिया और अपनी अवध रियासत की हकूमत को बरक़रार रखा। 
अंग्रेज़ों के क़ब्ज़े से अपनी रियासत बचाने के लिए उन्होंने अपने बेटे नवाबज़ादे बिरजिस क़द्र को अवध के वली (शासक) नियुक्त करने की कोशिश की थी मगर उनके शासन जल्द ही ख़त्म होने की वजह से उनकी ये कोशिश असफल रह गई। उन्होंने 1857 के भारतीय विद्रोह के दौरान ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के ख़िलाफ़ विद्रोह किया। आखिर में उन्होंने नेपाल में शरण मिली जहां उनकी मृत्यु 1879 में हुई थी।

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अरुणा आसफ़ अली - इन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में अपनी अहम भूमिका निभाई थी। मुंबई के गोवालिया टैंक मैदान में इन्होंने इंडियन नेशनल कांग्रेस का झंडा फहराया था। 1958 में दिल्ली की पहली मेयर चुनी गई थीं।



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