बिरसा मुंडा MCQ TEST
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पाठ में से
1. मुंडा कौन हैं? वे कहाँ रहते थे?
2. किस आंदोलन को 'सरदारी लडाई' के नाम से जाना जाता है?
3. मुंडा आदिवासी जंगलों की किस प्रकार रक्षा करते थे?
4. अंग्रेजी राज समाप्त करने के लिए बिरसा मुंडा ने क्या-क्या किया?
उत्तर -
1.मुंडा आदिवासी लोग हैं। वे बिहार के दक्षिणी पहाड़ी इलाके में रहते हैं।
2.ज़मींदारों द्वारा ज़मीन हथिया लिेए जाने के कारण मुंडाओं ने ज़मींदारों के खिलाफ़ जो आंदोलन चलाया वह 'सरदारी लड़ाई' के नाम से जाना जाता है।
3.मुंडा आदिवासी जंगलों में सूखी टहनियों,पत्तियों तथा गिरी हुई डालियों को एकत्र करने के अलावा कोई भी पेड़ नहीं काटता था।इस प्रकार वे जंगलों को सुरक्षित रखते थे।
4.अंग्रेज़ी राज समाप्त करने के लिए बिरसा मुंडा ने सभी मुंडाओं के सलाह दी कि वे किसी को भी लगान नहीं देंगे और अंग्रेज़ी हुक्म को नहीं मानेंगे। उन्होंने लोगों को बताया कि महारानी विक्टोरिया का राज खत्म हो गया है और मुंडा राज शुरू हो गया है।
भाषा की बात
1.नुक्ता वाले शब्द - आज़ादी गिरफ़तारी अंग्रेज़ ज़मीन तीरंदाज़ सज़ा खलाफ़ फ़ैसला
2.संयुक्त क्रिया-
क)अंग्रेज़ सरकार परेशान हो गई।
ख)उनके कुछ साथियों पर मुकदमा चलाया गया।
3.शब्दों मे 'र' का प्रयोग कीजिए-
दुर्भाग्यपूर्ण अंग्रेज़ों क्रांतिकारी विद्रोह दर्ज
कुछ करने के लिए
1. राज्य का नाम आदिवासी जनजाति
झारखंड मुंडा
बिहार सांथाली
ओडिशा कंध
आंध्रप्रदेश गोंड
अरुणाचल प्रदेश गारो
2. महिला स्वतंत्रता सेनानी योगदान
(चित्र और नाम
भारत में जब भी महिलाओं के सशक्तिकरण की बात होती है तो महान वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई की चर्चा जरूर होती है। बचपन में इनका नाम मणिकर्णिका था, बाद में लक्ष्मी बाई बनीं देवी लक्ष्मी के सम्मान में इन्होंने अपना नाम लक्ष्मी बाई रखा। 14 साल की उम्र में इनका विवाह झांसी के राजा गंगाधर राव के साथ हुआ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में प्रमुख उपलब्धियां ब्रिटिश सरकार के कानून को पालन करने से इंकार कर दिया मौत से पहले तक इन्होंने अंग्रेज के साथ वीरता से लड़ा। 22 साल की उम्र में ब्रिटिश सेना से लोहा लेते हुए शहीद हो गई।
श्रीमती भीकाजी जी रूस्तम कामा (मैडम कामा) भारतीय मूल की पारसी नागरिक थीं जिन्होंने लन्दन, जर्मनी तथा अमेरिका का भ्रमण कर भारत की स्वतंत्रता के पक्ष में माहौल बनाया। वो जर्मनी के स्टटगार्ट नगर में 22 अगस्त 1907 में हुई सातवीं अंतर्राष्ट्रीय कांग्रेस में भारत का प्रथम तिरंगा राष्ट्रध्वज फहराने के लिए प्रसिध्द हैं। उस समय तिरंगा वैसा नहीं था जैसा आज है।
उनके द्वारा पेरिस से प्रकाशित 'वन्देमातरम्' पत्र प्रवासी भारतीयों में काफी लोकप्रिय हुआ। 1907 में जर्मनी के स्टटगार्ट में हुयी अन्तर्राष्ट्रीय सोशलिस्ट कांग्रेस में मैडम भीकाजी कामा ने कहा, 'भारत में ब्रिटिश शासन जारी रहना मानवता के नाम पर कलंक है। एक महान देश भारत के हितों को इससे भारी क्षति पहुंच रही है।'
उन्होंने लोगों से भारत को दासता से मुक्ति दिलाने में सहयोग की अपील की और भारतवासियों का आह्वान किया, 'आगे बढ़ो, हम हिन्दुस्तानी हैं और हिन्दुस्तान हिन्दुस्तानियों का है।'
यही नहीं मैडम भीकाजी कामा ने इस कांफ्रेंस में 'वन्देमातरम्' अंकित भारत का प्रथम तिरंगा राष्ट्रध्वज फहरा कर अंग्रेजों को कड़ी चुनौती दी। मैडम भीकाजी कामा लन्दन में दादा भाई नौरोजी की प्राइवेट सेक्रेटरी भी रही थी।
सरोजिनी नायडू 'भारत कोकिला' के नाम से प्रख्यात श्रीमती नायडू ने एक उत्साही स्वतंत्रताकार्यकर्ता और एक कवि के रूप में सन 1930-34 के सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लिया था। ..
सुचेता कृपालानी एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी के साथ ही राजनीतिज्ञ भी थी। भारतीय राज्य (उत्तर प्रदेश) की मुख्यमंत्री बनने वाली वो पहली महिला बनीं। स्वतंत्रता आंदोलन में सुचेता के योगदान को भी हमेशा याद किया जाएगा। 1908 में जन्मी सुचेता जी की शिक्षा लाहौर और दिल्ली में हुई थी। आजादी के आंदोलन में भाग लेने के लिए उन्हें जेल की सजा भी हुई थी।
सुचेता भारत के बंटवारे की त्रासदी के समय महात्मा गांधी के बेहद करीब रही थी। वो उन महिलाओं में शामिल थी जिन्होंने गांधी जी के करीब रहकर देश की आजादी की नींव रखी थी। वो नोवाखली यात्रा में बापू के साथ थी।
बेगम हज़रत महल जो अवध (अउध) की बेगम के नाम से भी प्रसिद्ध थी, अवध के नवाब वाजिद अली शाह की दूसरी पत्नी थीं। अंग्रेज़ों द्वारा कलकत्ते में अपने शौहर के निर्वासन के बाद उन्होंने लखनऊ पर क़ब्ज़ा कर लिया और अपनी अवध रियासत की हकूमत को बरक़रार रखा।
अंग्रेज़ों के क़ब्ज़े से अपनी रियासत बचाने के लिए उन्होंने अपने बेटे नवाबज़ादे बिरजिस क़द्र को अवध के वली (शासक) नियुक्त करने की कोशिश की थी मगर उनके शासन जल्द ही ख़त्म होने की वजह से उनकी ये कोशिश असफल रह गई। उन्होंने 1857 के भारतीय विद्रोह के दौरान ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के ख़िलाफ़ विद्रोह किया। आखिर में उन्होंने नेपाल में शरण मिली जहां उनकी मृत्यु 1879 में हुई थी।
अरुणा आसफ़ अली - इन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में अपनी अहम भूमिका निभाई थी। मुंबई के गोवालिया टैंक मैदान में इन्होंने इंडियन नेशनल कांग्रेस का झंडा फहराया था। 1958 में दिल्ली की पहली मेयर चुनी गई थीं।
भारत में जब भी महिलाओं के सशक्तिकरण की बात होती है तो महान वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई की चर्चा जरूर होती है। बचपन में इनका नाम मणिकर्णिका था, बाद में लक्ष्मी बाई बनीं देवी लक्ष्मी के सम्मान में इन्होंने अपना नाम लक्ष्मी बाई रखा। 14 साल की उम्र में इनका विवाह झांसी के राजा गंगाधर राव के साथ हुआ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में प्रमुख उपलब्धियां ब्रिटिश सरकार के कानून को पालन करने से इंकार कर दिया मौत से पहले तक इन्होंने अंग्रेज के साथ वीरता से लड़ा। 22 साल की उम्र में ब्रिटिश सेना से लोहा लेते हुए शहीद हो गई।
श्रीमती भीकाजी जी रूस्तम कामा (मैडम कामा) भारतीय मूल की पारसी नागरिक थीं जिन्होंने लन्दन, जर्मनी तथा अमेरिका का भ्रमण कर भारत की स्वतंत्रता के पक्ष में माहौल बनाया। वो जर्मनी के स्टटगार्ट नगर में 22 अगस्त 1907 में हुई सातवीं अंतर्राष्ट्रीय कांग्रेस में भारत का प्रथम तिरंगा राष्ट्रध्वज फहराने के लिए प्रसिध्द हैं। उस समय तिरंगा वैसा नहीं था जैसा आज है।
उनके द्वारा पेरिस से प्रकाशित 'वन्देमातरम्' पत्र प्रवासी भारतीयों में काफी लोकप्रिय हुआ। 1907 में जर्मनी के स्टटगार्ट में हुयी अन्तर्राष्ट्रीय सोशलिस्ट कांग्रेस में मैडम भीकाजी कामा ने कहा, 'भारत में ब्रिटिश शासन जारी रहना मानवता के नाम पर कलंक है। एक महान देश भारत के हितों को इससे भारी क्षति पहुंच रही है।'
उन्होंने लोगों से भारत को दासता से मुक्ति दिलाने में सहयोग की अपील की और भारतवासियों का आह्वान किया, 'आगे बढ़ो, हम हिन्दुस्तानी हैं और हिन्दुस्तान हिन्दुस्तानियों का है।'
यही नहीं मैडम भीकाजी कामा ने इस कांफ्रेंस में 'वन्देमातरम्' अंकित भारत का प्रथम तिरंगा राष्ट्रध्वज फहरा कर अंग्रेजों को कड़ी चुनौती दी। मैडम भीकाजी कामा लन्दन में दादा भाई नौरोजी की प्राइवेट सेक्रेटरी भी रही थी।
सरोजिनी नायडू 'भारत कोकिला' के नाम से प्रख्यात श्रीमती नायडू ने एक उत्साही स्वतंत्रताकार्यकर्ता और एक कवि के रूप में सन 1930-34 के सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लिया था। ..
सुचेता कृपालानी एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी के साथ ही राजनीतिज्ञ भी थी। भारतीय राज्य (उत्तर प्रदेश) की मुख्यमंत्री बनने वाली वो पहली महिला बनीं। स्वतंत्रता आंदोलन में सुचेता के योगदान को भी हमेशा याद किया जाएगा। 1908 में जन्मी सुचेता जी की शिक्षा लाहौर और दिल्ली में हुई थी। आजादी के आंदोलन में भाग लेने के लिए उन्हें जेल की सजा भी हुई थी।
सुचेता भारत के बंटवारे की त्रासदी के समय महात्मा गांधी के बेहद करीब रही थी। वो उन महिलाओं में शामिल थी जिन्होंने गांधी जी के करीब रहकर देश की आजादी की नींव रखी थी। वो नोवाखली यात्रा में बापू के साथ थी।
बेगम हज़रत महल जो अवध (अउध) की बेगम के नाम से भी प्रसिद्ध थी, अवध के नवाब वाजिद अली शाह की दूसरी पत्नी थीं। अंग्रेज़ों द्वारा कलकत्ते में अपने शौहर के निर्वासन के बाद उन्होंने लखनऊ पर क़ब्ज़ा कर लिया और अपनी अवध रियासत की हकूमत को बरक़रार रखा।
अंग्रेज़ों के क़ब्ज़े से अपनी रियासत बचाने के लिए उन्होंने अपने बेटे नवाबज़ादे बिरजिस क़द्र को अवध के वली (शासक) नियुक्त करने की कोशिश की थी मगर उनके शासन जल्द ही ख़त्म होने की वजह से उनकी ये कोशिश असफल रह गई। उन्होंने 1857 के भारतीय विद्रोह के दौरान ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के ख़िलाफ़ विद्रोह किया। आखिर में उन्होंने नेपाल में शरण मिली जहां उनकी मृत्यु 1879 में हुई थी।
अरुणा आसफ़ अली - इन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में अपनी अहम भूमिका निभाई थी। मुंबई के गोवालिया टैंक मैदान में इन्होंने इंडियन नेशनल कांग्रेस का झंडा फहराया था। 1958 में दिल्ली की पहली मेयर चुनी गई थीं।
भाषा अभ्यास
1.नुक्ता वाले शब्द -क)ज़मीनदारों ख) ज़मीन ग) आज़ादी घ)ज़रूरत ङ)चीज़ें च)अंग्रेज़ों
2.
3.अर्थ लिखो
क)तेज - तीब्र गति
ख) तेज़ - चमक
ग)जमाना - बनाना
घ)ज़माना - समय
ङ)सजा - सजाना,सजावट
च)सज़ा - दंड
4. फन - साँप का फन
फ़न - कला,हुनर
5.वाक्यों को उचित शब्दों से पूरा कीजीए- उत्तर
क) जज ने अपराधी को -------------------- दी । सज़ा
ख)----------------- बदल गया है। ज़माना
ग) साँप अपना -------------- फैलाए बैठा है। फन
घ) बच्चों ने नए साल पर पूरा घर ---------- दिया। सजा
ङ) कंचन गाना गाने के ----------------- में माहिर है। फ़न
च) दही ---------------- कौन- सा मुश्किल काम है। जमाना
6.सही जगह पर नुक्ता लगाइए -
क)अंग्रेज़ ख)फ़ायदा ग)सफ़ाई घ)ज़रूर ङ)बुज़ुर्ग च)काफ़िला छ)फ़ुर्सत ज) ज़मीन
7. जातिवाचक सर्वनाम विशेषण
क) जंगल वह कीमती
ख) ज़मीन उन्होंने सुरक्षित
ग) पहाड़ हम सच्चे
8.बहुवचन रूप लिखिए-
क) डालियाँ ख) चीज़ें ग)टहनियाँ घ) पत्तियाँ ङ) लकड़ियाँ च)सभाएँ
9. वाक्य बनाइए -
क) तुम ज़रा चुप बैठो। ख)उसे आज सज़ा मिलने वाली है। ग) घोड़ा तेज़ दौड़ता है।
10. उचित श्ब्दों को छाँटकर लिखिए -
क)स्थापित ख)वृक्षों ग)जंगल घ) दूध ङ)संघर्ष
मुंडा
सांथाली
कंध आदिवासी
गोंड आदिवासी
गारो आदिवासी
काला पानी की सज़ा
सेल्युलर जेल का निर्माण
सेल्युलर जेल का निर्माण पोर्ट ब्लेयर में जो की अंडमान निकोबार द्वीपसमूह की राजधानी हैं यहीं पर सेल्युलर बनाई गई थी. इस जेल को बनाने में किसी हिन्दुस्तानी का नहीं बल्कि अंग्रेजो का हाथ था. साल 1857 की पहली क्रांति के दौरान अंग्रेजो के दिमाग में सेल्युलर जेल बनाने की योजना आई थी. दरअसल इस जेल का बनाने का मकसद स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों को कैद कर यहाँ बंदी बानाने का मकसद था. पूरी योजना के साथ इस जेल का निर्माण किया गया था. सन्न 1896 में इस जेल को बनाने का काम शुरू किया गया था. इस जेल को बनाने में लगभग 10 लगे थे. इस के बाद सन्न 1906 में यह जेल पूरी तरह से बन कर तैयार हो गई थी.
इस 3 मंजिल और 7 शाखाएँ वाली जेल में 696 सेल मौजूद थे. इस जेल के हर सेल का आकार 4.5 मीटर × 2.7 मीटर था. इस जेल के हर सेल के 3 मीटर ऊँची एक खिड़की भी बनाई गई थी. बैसे तो इस खिड़की का आकार इतना है की कोई भी आसानी से इस खिड़की से भाग सकता है. लेकिन जेल के चारों तरफ पानी होने के कारण यह असंभव था. इस जेल के 7 शाखाओं के बीच में एक टावर बनाया गया था जिस पर से इस जेल के कैदियों पर नज़र रखी जा सके इसी के साथ इस टावर पर एक घंटा भी लगाया गया था इस घंटे को कोई ख़तरा होने पर बजाया जाता था. इस जेल को बनाने में लाल ईंटो का उपयोग किया गया था इन ईंटो को बर्मा से लाया गया था. सेल्युलर जेल को बनाने में 5 से 17 लाख रूपये का खर्चा आया था.सेल्युलर जेल को काला पानी की साजा की जेल क्यों कहा जाता है
दरअसल सेल्युलर जेल में जिस भी कैदी को सजा भुगतने के लिए भेजा जाता था. उसे बोल-चाल की भाषा में कहते थे की इसे काला पानी की सजा दि गई है. अब आप के मन में प्रश्न अ रहा होगा की इसे काला पानी की सजा क्यों कहते हैं. दरअसल यह जेल भारत की भूमि से हजारों किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. इसी के साथ इस जेल के चारों तरफ पानी ही पानी है. इस जेल में हर कैदी के लिए एक सेल था इस लिए इस जेल को सेल्युलर जेल कहते हैं इससे होता यह की कोई भी कैदी आपस में बात न कर पाए. इसी के साथ इस जेल में कैदियों को बेड़ियों से बांध कर रखा जाता था. साथ ही कैदियों से कोलुओ द्वारा तेल भी पिलवाया जाता था.
देश के इन क्रांतिकारीयों को मिली थी काले पानी की सजा
सेल्युलर जेल में सजा काटने वाले क्रांतिकारियों में से गोपाल भाई परमानन्द, वामन राव जोशी, दीवान सिंह, एस.
चंद्र चटर्जी, मौलाना फजल ए हक खैराबादी, योगेंद्र शुक्ला, मौलाना अहमदुल्लाह, मौलवी अब्दुल रहीम सादिकपूरी, सोहन सिंह, अहमदुल्लाह, विनायक दामोदर सावरकर, और दत्तबटुकेश्वर के नाम शामिल हैं.
भारत सरकार ने सन्न 1979 में सेल्युलर जेल को एक राष्टीय स्मारक घोषित कर दिया था. वर्तमान में कोई भी भारतीय इस जेल में घूमने जा सकता है और देश के क्रांतिकारियों पर हुए जुल्म को भी देख सकतें हैं.
बातचीत के लिए
3.क्रांतिकारियों के बारे में जानकारी
बातचीत के लिए
3.क्रांतिकारियों के बारे में जानकारी
१८५७ के क्रांतिकारियों की सूची
विषय सूची
- १नाना साहब पेशवा
- २तात्या टोपे
- ३बाबू कुंवर सिंह
- ४बहादुर शाह जफ़र
- ५मंगल पाण्डेय
- ६मौंलवी अहमद शाह
- ७अजीमुल्ला खाँ
- ८फ़कीरचंद जैन
- ९लाला हुकुमचंद जैन
- १०अमरचंद बांठिया
- ११झवेर भाई पटेल
- १२सैयद अली
- १३ठाकुर सूरजमल
- १४उदमीराम
- १५ठाकुर किशोर सिंह, रघुनाथ राव
- १६तिलका माँझी
- १७देवी सिंह, सरजू प्रसाद सिंह
- १८नरपति सिंह
- १९वीर नारायण सिंह
- २०नाहर सिंह
- २१सआदत खाँ
- २२सुरेन्द्र साय
- २३जगत सेठ राम जी दास गुड वाला
- २४ठाकुर रणमतसिंह
- २५रंगो बापू जी
- २६भास्कर राव बाबा साहब नरगुंदकर
- २७वासुदेव बलवंत फड़के
- २८मौलवी अहमदुल्ला
- २९लाल जयदयाल
- ३०ठाकुर कुशाल सिंह
- ३१लाला मटोलचन्द
- ३२रिचर्ड विलियम्स
- ३३पीर अली
- ३४वलीदाद खाँ
- ३५वारिस अली
- ३६अमर सिंह
- ३७बंसुरिया बाबा
- ३८गौड़ राजा शंकर शाह
- ३९जौधारा सिंह
- ४०राणा बेनी माधोसिंह
- ४१सेनापति वीरा पासी
मंगल पांडे 1857 की क्रांति के महानायक थे। ये वीर पुरुष आज़ादी के लिये हंसते-हंसते फ़ंासी पर लटक गये। इनके जन्म स्थान को लेकर शुरू से ही वैचारिक मतभेद हैं। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इनका जन्म जुलाई 1827 में उत्तर प्रदेश (बालिया) जिले के सरयूपारी (कान्यकुब्ज) ब्राह्मण परिवार में हुआ। कुछ इतिहासकार अकबरपुर को इनका जन्म स्थल मानते हैं। इनके पिता का नाम दिवाकर पांडे था जो कि भूमिहार ब्राह्मण थे।
बड़े होकर वे कलकत्ता के बैऱकपुर की नेटिव इनफ़ेन्ट्री में सिपाही के पद पर नियुक्त हुए। वहां से 1849 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में भर्ती हुए। उस समय इनकी आयु 22 साल की थी। मंगल पांडे शुरू से ही स्वतंत्रता प्रिय व धर्मपरायण व्यक्ति थे। वे इनकी रक्षा के लिये अपनी जान भी देने के लिये तैयार रहते थे।
जब वे सेना में थे तो एक दिन दमदम के निकट कुएं से पानी भर रहे थे तब एक निम्न जाति के व्यक्ति (अछूत) ने उनसे लोटा मांगा तो उन्होंने देने से इंकार कर दिया तब उस निम्न जाति के व्यक्ति ने कहा की आप मुझे (अछूत होने के कारण) लोटा मत दो लेकिन जब फ़ौज में गाय व सूअर की चर्बी वाले कारतूसों का उपयोग करना पड़ेगा तो आप अपने धर्म को कैसे बचाओगे। ये बात सुनकर मंगल पांडे का दिमाग ठनका। उन्होंने सोचा अब या तो धर्म छोड़ना पडे़गा या विद्रोह करना पड़ेगा। फ़िर तय किया की प्राण भले ही जाये पर धर्म नहीं छोडूंगा। फ़लस्वरू प नेताओं द्वारा निश्चित तिथि से पहले ही उन्होंने विद्रोह का बिगुल बजा दिया। अंत में 31 मई को सारे देश में क्रांति की शुरू आत हो गई। इस क्रांति की शुरू आत परेड़ मैदान में हुई थी। 29 मार्च की एक शाम को बैरकपुर में मंगल पांडे ने अपनी रेजिमेंट के लेफ़्टिनेन्ट पर हमला कर दिया। सेना के जनरल ने सब सिपाहियों को मंगल पांडे़ को गिरफ़्तार करने का आदेश दिया, परन्तु किसी ने आदेश नहीं माना। इस पर मंगल पांडे़ ने अपने साथियों को विद्रोह करने के लिये कहा, लेकिन किसी ने भी उनका साथ नहीं दिया।
इस क्रांति में मंगल पांडे ने कई ब्रितानी सिपाहियों व अधिकारियों को मौत के घाट उतारा व हिम्मत नहीं हारी। जब अंत में अकेले हो गये तो उन्होंने ब्रितानियों के हाथ से मरने के बजाय खुद मरना स्वीकार किया। उन्होंने खुद को गोली मार दी और बुरी तरह से घायल हो गये। कुछ समय तक अस्पताल में उनका इलाज चला।
ब्रिटिश सरकार ने 8 अप्रैल 1857 को मंगल पांडे का कोर्ट मार्शल किया व उनको फ़ांसी पर चढ़ा दिया। रेजिमेन्ट के जिन सिपाहियों ने मंगल पांडे का विद्रोह में साथ दिया ब्रिटिश सरकार ने उनको सेना से निकाल दिया और पूरी रेजिमेन्ट को खत्म कर दिया। अन्य सिपाहियों ने इस निर्णय का विरोध किया। वे इस अपमान का बदला लेना चाहते थे। इसी विरोध ने 1857 की क्रांति को हवा दी धीरे -धीरे ये लहर हर जगह फ़ैलती गई। इलाहाबाद, आगरा आदि स्थानों पर तोड़फ़ोड़ व आगजनी की घटनाएँ हुई। नेताओं द्वारा तय की गई तिथि से पहले क्रांति की शुरू आात करने के कारण शायद यह क्रांति विफ़ल हो गई। फ़िर भी हम शहीद मंगल पांडे के बलिदान को कभी भी भुला नहीं पायेंगे ।
भगत सिंह (जन्म: २८ सितम्बर १९०७[a] , मृत्यु: २३ मार्च १९३१) भारत के एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी क्रांतिकारी थे। चन्द्रशेखर आजाद व पार्टी के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर इन्होंने देश की आज़ादी के लिए अभूतपूर्व साहस के साथ शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार का मुक़ाबला किया। पहले लाहौर में साण्डर्स की हत्या और उसके बाद दिल्ली की केन्द्रीय संसद (सेण्ट्रल असेम्बली) में बम-विस्फोट करके ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध खुले विद्रोह को बुलन्दी प्रदान की। इन्होंने असेम्बली में बम फेंककर भी भागने से मना कर दिया। जिसके फलस्वरूप इन्हें २३ मार्च १९३१ को इनके दो अन्य साथियों, राजगुरुतथा सुखदेव के साथ फाँसी पर लटका दिया गया। सारे देश ने उनके बलिदान को बड़ी गम्भीरता से याद किया।